Monday, June 11, 2018

रिजल्ट का दिन


आज कल हिन्दी अखबार कम ही पढने को मिलता है, ज्यादातर खबरे तो फ़ेसबुक और वाट्सएप पर ही मिल जाती है, खबर कितनी सच्ची है कितनी झूठी वो किस्सा अलग ही होता है वरना फ़ारवर्डेड मेसज देख कर घर वाले कभी तरबूज खाना छोड़ देते है तो कभी पत्तागोभी। आज किस्मत चाहती थी की थोड़ा इतिहास के पन्नों मे झाँका जाये ताकि इस चीज का आभास हो कि जिन पैंमानों को जिंदगी में सफ़लता का अंतिम पड़ाव मान लिया गया था आज कितने व्यर्थ और महत्वहीन है।

आज पेपर खोला तो अधिकतर पन्नें पटे पड़े थे कोचिंग वालो के विज्ञापनों से, जेईई का रिजल्ट जो निकला है। एक से बढ कर एक भावनात्मक और सवेंदनाओ से भरे हुए विज्ञापन, माँ बाप बच्चों को किसी फ़ोटो में मिठाई खिला रहे है, 5 बच्चें किसी तरह ठुसे हुए एक फ़्रेम में V का साईन बनाते हुए, कही किसी को मेडल पहनाया जा रहा है। स्वलिखित पत्र पूरा चिपका हुआ पेपर में जिसमे टापर बच्चा कह रहा है की कैसे उसने 18 घंटे रोज पढाई की और कैसे 4 साल से कोंचिग के सर दिन रात उसके साथ है। कोंचिग के संसथापक गर्व के साथ लिख रहे हैं कि सिर्फ़ उनकी और उनकी ही कोचिंग में बच्चो को भेड़ बकरियो की तरह नही ठुसा जाता, कम बच्चे लेकर उन पर व्यक्तिगत ध्यान देकर ‘विनर्स’ बनाये जाते है। एक ही बच्चा दिल्ली की कोटा की और हैदराबाद की कोचिंग में पढ कर टाप कर गया है, और हर कोचिंग वाला कह रहा है कि ये तो बस यही पढा था।

8 साल पहले भी ये सब ड्रामा देख कर हँसी आ जाती थी, आज भी आ जाती है। बस तब और उसके बाद के कुछ सालो तक घर वाले कभी पेपर पढते पढते तिरछी नजर से देख लेते थे या फ़िर हेडलाईन जोर से सुना देते थे ताकि ये कायम हो जाये की भाई तुम हँस लो पर ये भी जान लो कि तुम ‘विनर’ नहीं हो। 2 या 3 साल की जद्दोजहद और फ़िर एक दिन एक परीक्षा का परिणाम ये फ़ैसला कर देगा की कौन विनर है कौन लूसर ।

आखिर यही चीज तो सिखायी गयी थी सालो से, परीक्षा निकालो और अच्छे कालेज में लग जाओ वरना लूसर हो जाओगे, जिंदगी बरबाद हो जायेगी, कभी उभर ही नही पाओगे, बाद में पछतावे में ही जलते जलते मर जाओगे। ऐसा नहीं है दुखी नही हुए या कोशिश नहीं की, मानने का प्रयास तो भरपूर किया की भाई अब पेपर में फ़ोटो नहीं आया तो अब तो मरने के बाद उठावने के लिये ही छपेगा पर क्या करे जिंदगी को कभी इतना सिरियसली लिया नहीं की इतनी सिरियस बात की सिरियसनेस समझ जाते।

फ़िर परीकथा की तरह जिंदगी चलती हैं, हमारे जैसे और कई लुसर मिलते है, अपना गम बांटते है, नये सपने देखते है और फ़िर अलग अलग कारणो से आ जाते है पेपर में फ़ोटो, माँ बाप मिठाई नहीं खिला रहे, कोई क्रेडिट भी नही ले रहा सफ़लता का, बस अपने अपने कारण होते है। और यही विनर लोग फ़िर मिलते है किसी मोड पर जिंदगी के, शायद अब कोई मिठाई खिलाने वाला नहीं, कोई मेडल पहनाने वाला नहीं, वो ड्रामा साल भर पहले का था, वो फ़िल्म अब हिट होकर थियेटर से बाहर हो गई, आप नैपथ्य यें जाकर इतंजार कीजिये, जिंदगी शायद तरस खा कर एक बार फ़िर स्पाट्लाईट दे दे या फ़िर खुश रहीये यही सोच कर की एक बार तो स्टेज पर आये।

वक्त के साथ विनर लूजर बन जाते है और लूजर विनर और ये कार्यक्रम उम्र भर चलता रहेंगा। आपकी सफ़लता आपकी असफ़लातओं जितनी ही आंशिक रहेंगी। कितना भी पा लिजिये लोग एक हद तक ही पलकों पर बैठायेंगे फ़िर गिरा देंगे कितना भी खो लिज़ीये, लोग एक हद तक ही हँसी उडायेंगे फ़िर भूल जायेंगे। पात्र बहुत सारे है इस ड्रामें में तो हर एक व्यक्ति के लिये एक निश्चित समय ही निर्धारित हैं 

आज XLRI में नयी बैच आयी हैं जैसे 3 साल पहले हम आये थे और हमे बोला गया था की तुम लोग देश के क्रीम हो, अब तुम्हे बस दुनिया बदलनी हैं अच्छे दिन आने वाले है, आज हमारी कम्पनी का भी अगला बैच आ गया है, उन्हें भी दुनिया बदलनी हैं जैसे साल भर पहले हमे बदलनी थी। अगले साल अगले साल वाली बैच दुनिया बदलेगी और पूरानी बैच वाले पैंट शर्ट कुर्ती साड़ी पेहन गले में पट्टा डाल आफ़िस जायेंगे। समय की याददाश्त बड़ी कमजोर है, वो हर साल भूल जाता है किसे दुनिया बदलना है और फ़िर नये लोगो पर ये जिम्मेंदारी आन पड़ती है।

शायद आज पट्टा पेहन कर आफ़िस जाने वालो में से ही कोई एक दुनिया बदलेगा, फ़िर से पेपर में फ़ोटो छपेगा और विनर और लूजर का ये सायकल भी। किरदार और चेहरे बदलते रहेंगे तो किसी दूसरे का फ़ोटो पेपर में देख ना दुखी होईये ना ही खुद का देख कर खुश होईये। ज़िंदगी सब का बहीखाता बहुत धैर्य से बना रही है, हिसाब यही पूरा होना है।