Tuesday, August 4, 2020

एक शाम किशोर के नाम

किशोर कुमार, शायद ही कोइ ऐसा हो जिसने ये नाम ना सुना हो। किशोर दा के गाने वक्त के साथ और प्रासंगिक होते गये है। शायद नयी पीड़ी रफ़ी मुकेश या मन्ना डे के मुकाबले किशोर से काफ़ी ज्यादा पारिचित है। किशोर के अलग अलग गानों के कभी रिमीक्स बनते है तो कभी वो स्लो चलने वाले कवर। किशोर के बारें मे भी कुछ लिखना रफ़ी जितना ही कठिन हैं। हाँलाकि किशोर शास्त्रिय संगीत में पांरगत नहीं थे, ना ही उनकी आवाज की रेंज मे इतनी ज्यादा विवधता थी। पर किशोर जब गाते थे, तो डुब कर गाते थे और अपने साथ साथ सुनने वालों को भी गाने में डुबा देते थे।

कहते हैं कि बचपन में किशोर की आवाज काफ़ी कर्कश थी, एक बार उन्होंने कुछ शरारत की और उन्हें घर से बाहर निकाल दिया गया। नन्हें किशोर इतने आहत हुए कि वो 2 दिन तक रोते रहे, नतीजतन उनकी आवज सुरीली हो गयी, कुछ लोग कहते हैं कि बचपन में किशोर ने चाकु से खुद को चौटिल कर लिया था फ़िर वो बहुत रोये और उनकी आवाज मधुर हो गयी हो। कारण कुछ भी रहा हो किशोर को रुला कर किस्मत ने दुनिया का भला कर दिया। कालांतर में जब अशोक कुमार साहब फ़िल्म इडंस्ट्री में जम गये तो किशोर को भी खंडवा से जो कि मध्यप्रदेश का एक छोटा सा कस्बा हैं, मुंबई बुला लिया गया।

मुझे तो बहुत समय बाद पता चला कि किशोर कुमार गायक भी हैं। मैं तो उन्हें एक्टर ही समझता था। पड़ोसन फ़िल्म आज भी कामेडी की सदाबहार फ़िल्म हैं। किशोर ने जो रोल फ़िल्म में किया हैं लगता हैं कि वो एक्टिंग के लिये ही बने थे। लड़की जब भाव दे रही हो तो लड़के को सख्त लौंडा बना कर खिड़की बंद करा लेना, भगवान कृष्ण बन कर प्यार को छोड़ अपने अपमान के बदले के लिये थप्पड़ लगाना, किशोर जैसा गुरू हर लड़के को मिलता तो काफ़ी प्रेम कहानियाँ सफ़ल हो जाती। प्यार किये जा फ़िल्म में भी किशोर ने कमाल का रोल किया हैं। चलती का नाम गाड़ी मैंने तो नहीं देखी हैं पर काफ़ी तारीफ़ सुनी है। आके सीधी लगी जैसें दिल को कटरिया गाने में किशोर कुमार ने ना सिर्फ़ महिला और पुरूष दोनो की आवाज दी है, साथ ही साथी महिला बनने की एक्टिंग भी की हैं और क्या खुब की हैं, बहुत ही मनोंरजक गाना। कहते है कि शुरुआत में किशोर दा भी के सहगल साहब कि नकल करते थे फ़िर एक आर एक डी बर्मन साहब ने कहा कि अपन कुछ अन्दाज जाद करो तो किशोर दा ने यूडलिन्ग चालु की थी।

चलिये शुरु करते किशोर दा के मेरे पंसदीदा गानों का सफ़र। सबसे पहले बात करते हैं मस्ती वाले गानों की। पहले मुझे लगता था कि किशोर दा बस मस्ती वाले गाने ही गाते हैं, दर्द वाले रफ़ी मुकेश गाते हैं। सबसे पहले एक चतुर नार गाना, गाने से भी हास्य पैदा किया जा सकता हैं कि अद्भुत मिसाल। इस गाने के बारे में कहा जाता हैं कि मन्ना डे साहब पहले गुस्सा हो गये थे कि मैं शास्त्रिय संगीत में पांरगत इंसान किशोर से मुकाबले में कैसे हार सकता हुं, सबने बहुत मनाया उन्हें वो नहीं माने, फ़िर खुद किशोर साहब गये, उनसे बात की और उन्हें गाने के लिये मनाया।

जिंदगी एक सफ़र है सुहाना गाने मैं किशोर की आवाज और काका का बुलेट चलाते हुए अंदाज इतना ज्यादा हिट हुआ, कहते हैं कि मूवी के हिट होने के पीछे इस गाने का और काका का छोटे से रोल का बड़ा हाथ था। नीले नीले अंबर पर गाना आज भी सदाबहार हैं, गिटार सिखने वाला हर आदमी इस गाने पर हाथ जरुर आजमाता हैं। किशोर दा जब मस्ती में पल भर के लिये कोई हमें प्यार कर ले झुठा ही सही गाते हैं तो तमाम युवा दिलों की छुपी तमन्ना को शब्द दे देते हैं। चल चल चल मेरे हाथी मे इंसान क्या हाथी भी किशोर दा की आवाज पर झूम उठता हैं । चला जाता हुँ किसी की धुन मे धड़कते दिल के तराने लिये के बिना तो कोई भी रोड ट्रिप अधुरी सी लगती है। सलामें इश्क मेरी जा वैसे तो लता जी ने बहुत ही सुंदर तरीके से गाया हैं पर गाने का असली मजा तो जब एक लंबा आलाप लेने के बाद इसके आगे की तू दास्ता मुझसे सुन पर किशोर की एंत्री से आता हैं।

प्यार होने के एहसास को किशोर दा ने एक अजनबी हसीना से युँ मुलाकात हो गयी में खुबसूरती से पिरोया हैं तो एक लड़की भीगी भागी सी में खुबसूरत उपमाओं से सजाया हैं। समझ नहीं आता गाने के शब्द ज्यादा सुंदर हैं, किशोर की आवाज या मधुबाला जी । छु कर मेरे दिल को किया तुने क्या इशारा को किशोर दा ने बहुत ही खुबसूरती से गाया हैं। मेरे सामने वाली खिड़की में एक चांद का टुकड़ा रहता हैं से किशोर ने जितनी सरलता, मधुरता और संजीदगी से गाया हैं कि ये गाना भी कालजयी बन गाया हैं

प्यार के इजहार में भी किशोर दा ने बहुत साथ दिया हैं लोगो का। चाहे दिवार जैसी गंभीर फ़िल्म में शशि साहब का कह दू तुम्हें या चुप रहूँ दिल में मेरे आज क्या हैं हो जिसका रिमिक्स भी काफ़ी हिट हुआ था या फ़िर पड़ोसन के भोले का बिंदु को जन्मदिन पर कहना हैं कहना हैं आज तुमसे ये पहली बार होकोरा कागज था ये मन मेरा गाने की शुरुआत तो मानो प्यार के आने का स्वर हो गया हैं। दिल क्या करे जब किसी को किसी से प्यार हो जाये गाना मुझे पहले ज्यादा पंसद नहीं था, पर कोटा में रेडियो पर सुन सुन कर इस गाने से भी एक लगाव सा हो गया हैं।

हमें तुमसे प्यार कितना शायद किशोर के द्वारा गाये गए सबसे बेहतरीन गानों में से एक होगा। जिस संजीदगी और गंभीरता से किशोर ने ये गाना गाया हैं एक अलग ही रूमानियत का एहसास कराता हैं ये गाना खास कर रात को बिना किसी शोर के आसमान को देखते हुए सुनना। पल पल दिल के पास तुम रहती हो के बोल और गायान दोनो बहुत ही मधुर हैं। किशोर के जटिल गायान में आप नीरज जैसे महान कवि के जटिल शब्द डाल दे तो फ़ुलों के रंग से दिल की कलम से और शोखियों में घोला जाये जैसी सुंदर कविताओं की रचना हो जाती हैं।प्यार दिवाना होता हैं और ये शाम मस्तानी अत्यंत सरल और सुंदर रचनाए हैं। ओ मेरे दिल के चैन तो ऐसा लगता है बस रिपीट पर सुनते जाओ।

किशोर दा का आने वाला पल जाने वाला हैं बहुत ही नास्टालजिक फ़ील देने वाला गाना हैं। जिंदगी के सफ़र में जो गुजर जाते हैं मकाम गाना नास्टालजिक के साथ थोड़ा दुखी भी कर देता हैं। मुसाफ़िर हुँ यारों ना घर है ना ठिकाना गाने को में जीवन में मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया के साथ रखता हुं ये दोनो गाने बहुत ही उर्जा और उत्साहन देने वाले हैं। वहीं तेरे बीना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं मे किशोर ने अलग ही छाप छोड़ी हैं।


किशोर और राजेश खन्ना की जोड़ी का अलग से उल्लेख करना बनता हैं क्योंकि दोनो का एक दूसरे की सफ़लता में बहुत बड़ा हाथ हैं। सबसे पहले बात करते हैं अमर प्रेम के गानों की। चाहे वो चिंगारी कोई भड़के हो या फ़िर कुछ तो लोग कहेंगे या ये क्या हुआ, ये तीनों ही गाने उत्क्रष्ट उदाहरण हैं कि किशोर गंभीर गानों के साथ ही उतना ही न्याय करते हैं जितना मस्ती वाने गानो का। मेरे दिल में आज क्या हैं

गाना भी अलग ही नास्टालजिक फ़ील देता हैं। आराधना फ़िल्म के गानों ने तो अलग ही इतिहास रचा था फ़िर चाहे वो मेरे सपनों की रानी हो या फ़िर रुप तेरा मस्तानाकोरा कागज की बात तो हम उपर कर ही चुके हैं। जय जय शिव शकंर में काका का डांस और किशोर की आवाज एक अलग ही पहचान बना चुकी हैं। गोरे रंग पर ना इतना गुमान कर गाना कई लड़के आज भी लड़कियों से चुहल करने के लिये करते हैं। नदिया से दरिया, दरिया से सागर, सागर से गहरा हैं जाम बालीवुड का मधुशाला हैं।

टुटे दिलों और गम के इजहार के लिये जितने मरहम रफ़ी लगाते हैं किशोर भी उतना संबल देते है। किशोर ने इतने दर्द वाले गाने गाये हैं ये हमें भी पहली बार दिल के टुटने पर ही पता चला। फ़िर चाहे अमिताभ का दिलबर मेरे कब तक मुझे ऐसे ही तड़पाओगे हो या फ़िर काका का ये जो मोहब्बत हैं ये उनका हैं काम। कितने ही लोग जो किसी रिश्ते को तोड़ कर आगे बड़े हैं वो कभी ना कभी हम बेवफ़ा हरगीज ना थे पर हम वफ़ा कर ना सके जरूर गाये हैं। इंतहा हो गयी इंतजार की तो प्रेमिका के मेसेज का इंतजार कर रहें नौजवानों का ऐंथम हैं।

पर अगर किशोर के श्रेष्ठ गानों की बात करे तो वो नि;संदेह मेरे महबूब कयामत होगी और मेरी भीगी भीगी सी पलकों पे रह गये जैसे मेरे सपने बिखर के होंगे। जहा पहले गाना खुद किशोर दा पर फ़िल्माया गया हैं दूसरे गानें में संजीव साहब रफ़ी वाले खिलौना जान कर और खुश रहे तू सदा के स्तर को भी मिलों दूर पार कर गये हैं मानों संजीव साहब का जन्म बस दर्द के इजहार को हुआ था। मेरे महबूब के अंतरे में जो प्रेमिका के प्रति आक्रोश दिखाया हैं और किशोर ने उतनी ही भत्सनापूर्व तरीके से उसे गाया है।

मेरी तरह तू आहें भरे

तू भी किसी से प्यार करे

और रहे वो तुझसे परे
तूने ओ सनम ढायें हैं सितम
तो ये तू भूल न जाना
के ना तुझपे भी इनायत होगी

वहीं शायद स्त्री के प्रति नफ़रत भरे सबसे ज्यादा बोल अनामिका में ही लिखे गये हैं और किशोर ने उतने ही दर्द पूर्वक गाया हैं ।

तुझे बिन जाने, बिन पहचाने मैंने हृदय से लगाया
पर मेरे प्यार के बदले में तूने मुझको ये दिन दिखलाया

जैसे बिरहा की रुत मैंने काटी
तड़प के, आहें भर-भर के
जले मन तेरा भी किसी के मिलन को
अनामिका, तू भी तरसे
आग से नाता, नारी से रिश्ता काहे मन समझ ना पाया?
मुझे क्या हुआ था, एक बेवफ़ा पे हाय, मुझे क्यों प्यार आया?

तेरी बेवफ़ाई पे हँसे जग सारा
गली-गली गुज़रे जिधर से
जले मन तेरा भी किसी के मिलन को
अनामिका, तू भी तरसे

चलते चलते मेरे ये गीत का सेड वर्जन किसी भी अजीज इंसान को श्रद्धाजंलि देने के लिये उत्तम हैं। खिलते हैं गुल यहाँ खिल के बिखरने को गाना कम कविता ज्यादा लगता हैं। मेरा जीवन कोरा कागज गाना जीवन से ठोकरें खाने के बाद थक जाने के बाद जीवन के प्रति उदासीनता दिखाता हैं। मेरे नैना सावन भादौ फ़िर भी मेरा मन प्यासा के तीन वर्जन हैं और तीनों ही काफ़ी मधुर ये। वो शाम कुछ अजीब थी कुछ दिनों से काफ़ी चड़ा हुआ हैं मेरे दिमाग में, हर दो तीन दिन में लगा ही लेता हुँ, ब्लेक एंड वाईट गानों में एक अलग ही फ़ील होती हैं।

किशोर और बारिश का भी अलग ही रिश्ता था फ़िर चाहे वो भीगी भीगी रातों मे गाना हो लता जी के साथ जो संयोग से इस समय मेरे मोबाईल पर चल रहा हैं और बाहर बहुत तेज बारिश भी आ रही है या फ़िर अमिताभ और स्मिता जी पर फ़िल्माया खुबसूरता गाना आज रपट जाये तो हो। अगर किसी को कुछ शंका हैं कि साँवला इंसान सुंदर नहीं हो सकता या फ़िर साड़ी में कोई लुभावना नहीं दिख सकता तो एक बार इस गाने को जरूर देख ले। रिमझिम गिरे सावन सुलग सुलग जाये मन किशोर के मेरे सबसे ज्यादा पंसदीदा गानों में से एक हैं, ये किशोर के गाये हुए सबसे कठिन गानों मे से एक हैं।

लिखते लिखते कई घंटे हो गये हैं अब पर किशोर के गानों का या किशोर के किस्से का कोई अंत नहीं हैं। चार शादियों के बाद भी किशोर पूरी जिंदगी तन्हा ही रहें, कई लोग किशोर को काफ़ी कठिन, जटिल और पागलपन की हद तक सनकी मानते हैं। कहते हैं कि किशोर ने घर के पेड़ो को नाम दे रखे थे और वो घंटो पेड़ो से बात करते रहते थे क्योंकि एक वक्त के बाद उन्हें इंसानों से कोफ़्त हो गयी थी। कल रक्षाबंधन भी था, किशोर का फ़ूलो का तारो का सबका कहना है इस त्योहार का पेटेंट गाना हैं वैसे मेरी प्यारी बहनिया जब बनेंगी दुल्हनियाँ भी काफ़ी सुंदर गाना हैं।

चलिये अब इस सफ़र पर यही विराम लगाते हैं, किशोर उनके किस्से उनका गायन हमेशा अमर रहेंगे। उम्मीद हैं आने वाली पीड़िया भी किशोर के गानों से खुद को इतना ही जोड़ पायेंगी जितना हम जोड़ पाते हैं।

 


Friday, July 31, 2020

एक शाम रफ़ी साहब के नाम.........

आज रफ़ी साहब की पुण्यतिथि हैं। आज से 40 बरस पहले जब 31 जुलाई को रफ़ी साहब जब दुनिया से विदा हुए थे, कहते है बादल भी फ़ुट फ़ुट कर रोये, पूरी मुम्बई बारिश से सराबोर हो गई। रफ़ी साहब तो पहले ही कह गये थे, ‘‘तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे संग संग तुम भी गुनगुनाओगे ’’ और हम आज तक उनके नगमें सुन रहे है, सुना रहे है, गुनगुना रहे है। जीवन की मस्ती हो, पहले प्यार का इजहार हो, प्यार का परवान हो, या फ़िर टुटते दिलों की सिसकिया, जीवन से मन उचट जाना या फ़िर भगवान की भक्ती में लीन हो जाना, रफ़ी साहब हर जगह प्रासंगिक है।

रफ़ी साहब का पहला गाना जो सुना था वो ‘‘बहारों फ़ूल बरसाओ सुना’’ था, घर की कैसेट में बजता रहता था जो, पिताजी और बड़ी बहान को काफ़ी पंसद था, हमें तो तब गीत संगीत की ना ज्यादा आदत थी ना ही ज्यादा समझ। फ़िर जैसे जैसे जीवन में आगे बड़े, प्यार हुआ, दिल टूटा, ठोकरे खाई, भगवान की याद आई, मौसम अच्छा लगा या चाँद खुबसूरत लगा, रफ़ी साहब से रिश्ता गहरा होता गया। जिस जमाने में जनता कान में मँहगे हेडफ़ोन लगा कर लिंकिन पार्क और ऐमिनेम सुन रही थी, हम हमारा नोकिया के साथ फ़्री मिला ईयरफ़ोन लगा कर कही शांति से बैठ कर रफ़ी साहब के गाने सुनते थे, खास कर बस या ट्रेन के लंबे सफ़र में रफ़ी साहब का साथ काफ़ी जरूरी था वक्त काटने को। कुछ कूल बच्चों ने हमें देवदास का नाम दे दिया जो घिसे पीटे पूराने गाने सुनता हैं, कालांतर में उनके भी दिल टुटे, जिंदगी ने लताड़ा और उन्हें भी हमारे घिसे पीटे गानों के पीछे का मर्म समझ आ गया और रफ़ी साहब पीड़ी दर पीड़ी प्रासंगिक होते गये।

लड़कपन की शुरुआत होते ही रुमानी लोगो कि प्लेलिस्ट में रफ़ी साहब का आगमन हो जाता है। सब के दिल पूकार ही लेते है ‘‘पुकारता चला हूँ मैं गली गली बहार की बस एक छाँव जुल्फ की बस एक निगाह प्यार की’’। फ़िर थोड़ी दिल्लगी के बाद आप जब इजहार को तैयार हो जाते है तो फ़िर दिल सोचता है कि मेहरबां लिखूँ, हसीना लिखूँ या दिलरुबा लिखूँ हैरान हूँ कि आपको इस खत में क्या लिखूँये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर कि तुम नाराज़ ना होना कि तुम मेरी ज़िन्दगी , की तुम मेरी बंदगी हो। या फ़िर कभी कभी पूछना पड़ता है कि, यूँही तुम मुझसे बात करती होया कोई प्यार का इरादा है ना माने तो मनाने के जतन भी करने पड़ते है, ये माना मेरी जाँ मोहब्बत सजा है मज़ा इसमें इतना मगर किसलिए है। और फ़िर भी ना माने तो  एहसान तो है ही कि जताने तो दिया, एहसान तेरा होगा मुझ पर, दिल चाहता है वो कहने दो, मुझे तुमसे मोहब्बत हो गयी है, मुझे पलको की छाँव में रहने दो।

अगर प्रेमपत्र स्वीकार हो गया तो फ़िर मेहबूबा में कभी चाँद दिखता है तो कभी वो चाँद से ज्यादा हसी दिखती हैं। इसलिये कभी हम गाते है, चौदहवीं का चाँद हो, या आफ़ताब हो / जो भी हो तुम खुदा की क़सम, लाजवाब हो। तो कभी हम गाते है, मैंने पूछा चाँद से के देखा है कहीं, मेरे यार सा हसीन चाँद ने कहा, चाँदनी की कसम, नहीं, नहीं, नहीं । प्यार का खुमार जब अपने सबसे चरम पर होता है तो फ़िर जीवन में सब अच्छा लगता है और पूरा जीवन बस महबूबा के आस पास ही घुमता है। कभी, तेरी आँखों के सिवा दुनियाँ में रखा क्या है, ये उठे सुबह चले, ये झूके शाम ढले मेरा जीना, मेरा मरना, इन ही पलकों के तले, तो कभी तुम जो मिल गए हो, तो ये लगता है, के जहां मिल गया एक भटके हुए राही को, कारवाँ मिल गया

फ़िर जीवन एक खुबसूरत स्वपन बन जाता है एक कविता बन जाता है। जहाँ पर दुश्मनी चिलमन से हैं ये जो चिलमन है दुश्मन है हमारा या फ़िर जुल्फ़े रिशमी और आँखे शरबती लगती हैं, ये रेशमी जुल्फे, यह शरबती आँखे. इन्हे देखकर जी रहे हैं सभी उस जमाने के गीतकारो ने भी रफ़ी जी का भरपूर साथ दिया है, सारे गीत इतने अच्छें उपमा और रूपक अंलकारो से सुस्ज्जीत । वैसे तो काका के अधिकतर हिट गाने किशोर साहब ने गाये है पर रफ़ी और काका की जोडी से अलग ही मधुर गाने निकले हैं।

युवास्था में प्यार के अलावा जो दूसरी चीज हावी रहती है वो है मस्ती। रफ़ी ने जीवन कि खुशी और उर्जा को भी बखुबी शब्द दिये हैं। फ़िर चाहे वो शम्मी साहब का जोर जोर से याहु बोल कर चिल्लाना और पूछना कि ‘ चाहे कोई मुझे जंगली कहे’ या फ़िर जंपिग जेक जीतू जी का ‘मस्त बाहारो का मैं आशिक् या फ़िर धर्मेन्द्र जैसे जट का ‘यमला पगला दिवाना’ पर बगैर कोरियोग्राफ़ी के नाचना। चाँद मेरा दिल तो मूल सुनो या शाहरुख का सुश्मिता के सामने नीचे झुक कर गाना अच्छा ही लगता है। खतों से रफ़ी साहब का अलग रिश्ता है इसलिये लिखे जो ख़त तुझे वो तेरी याद में हज़ारों रंग के नज़ारे बन गए सवेरा जब हुआ तो फूल बन गए जो रात आई तो सितारे बन गए प्रेम का कम मस्ती का गाना ज्यादा लगता है।

अब आते हैं रफ़ी साहब के सबसे शक्तिशाली भाग पर, दिल का टुटना। वैसे तो मूल रुप से इस तरह के गानों में सबसे पहले मुकेश साहब की याद आती हैं, पर रफ़ी ने दिल के टुटने को जिया है, एक एक शब्द में दर्द की वेदना का ईजहार किया है। काफ़ी समय तक तो हमने बस क्या हुआ तेरा वादा वो कसम वो इरादा ही सुना था। क्या से क्या हो गया तेरे प्यार में और दिन ढल जाये रात ना जाये, तू तो ना आए तेरी याद सताये से ना सिर्फ़ रफ़ी का पर देव आंनद का भी एक नया रुप देखा। प्यार में जिनके सब जग छोड़ा, और हुए बदनाम, उनके ही हाथो हाल हुआ ये, बैठे है दिल को थाम। 2 पक्तियों मे सब कह दिया।                                                                                                                                              धरम जी तो बद्दुआ देने की हदों के पार करते हुए गाते है मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे मुझे ग़म देने वाले तू खुशी को तरसे तो जीतू जी गाते है की मोहब्बत अब तिजारत बन गयी है तिजारत अब मोहब्बत बन गयी है किसी से खेलना फिर छोड़ देना किसी से खेलना फिर छोड़ देना खिलौनों की तरह दिल तोड़ देना हसीनों, हसीनों की ये आदत बन गयी है हमेशा मस्ती भरे गीत गाने वाले शम्मी साहब को जब उनकी प्रेमिका चुनौती देती है कि मुझे रुला कर बताओ तो वो दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर यादों को तेरी मैं दुल्हन बनाकर रखूँगा मैं दिल के पास मत हो मेरी जां उदास गा कर उसे रुला देते हैं। मनोज कुमार साहब भी पत्थर के सनम तुझे हमने मौहब्बत का खुदा गा कर गम में डुब जाते हैं।

वैसे तो ये सारे ही गाने बहुत ही ज्यादा उम्दा हैं पर अगर मुझे कोई एक गाना चुनना पड़े तो फ़िर में धर्म संकट में आ जाउँगा। दो गानों में काटे की टक्कार रहेंगी। एक ही फ़िल्म और एक ही अभिनेता। संजीव साहब पर फ़िल्माये गये खिलौना जान कर तुम मेरा दिल तोड़ जाते हो या फ़िर खुश रहे तु सदा ये दुआ हैं मेरी, बेवफ़ा ही सही दिलरूबा है मेरी। पता नहीं ज्यदा दर्द रफ़ी साहब की आवाज से आता है या संजीव साहब की अदाकारी से पर दोनों गाने बहुत ही अव्वाल दर्जे के हैं। काफ़ी दुख मनाने के बाद सब आशिक आगे बढ जाते है तेरी गलियों में ना रखेंगे कदम आज के बाद , ये आज के शब्द मूव आन का रफ़ी वाला वर्जन हैं।




जीवन में दर्द के और भी अलग अलग कारण है, सिर्फ़ प्रेमिका से रिश्ता टुटना नहीं। चाहे फ़िर राजेश खन्ना का अकेले है चले आओ जहा हो सुनो या फ़िर सुनील दत्त साहाब का पत्नी की मौत पर अकेलेपन का दश झेलने पर आपके पहलू में आकर रो दिये गाना हो या फ़िर राजकुमार साहब कभी पत्थर में चुने जाने पर अपने प्यार को बुलाते हुए तुझको पुकारे मेरा प्यार या फ़िर दुनिया का प्यार के प्रति नफ़रत देखने पर ये दुनिया ये मेहफ़िल मेरे काम की नहीं। कभी कभी रफ़ी साहब के निजी जज्बात भी गाने से जुड़ जाते थे जैसे उनकी बेटी की शादी होने वाली थी तो बाबुल की दुआ तो लेती जा गाते समय रफ़ी साहब फ़ुट फ़ुट कर रो पड़े ।

रफ़ी साहब से बड़ी सेक्युलरिसम की या गंगा जमुना तहजीब की कोई मिसाल नहीं है। रफ़ी साहब प्रत्यक्ष प्रमाण है कि कलाकर अपनी साधना में जब लीन हो जाता है तो बस कला का हो कर रह जात है फ़िर उसका कोई मजहब नहीं रहता। हर बात पर मुस्लिमों को गाली देने वाले कट्टर हिंदुओ को नहीं पता कि जो भजन वो बरसो से गाते आ रहे हैं उनमे से कितने दिलीप साहब उर्फ़ युसुफ़ जी पर फ़िल्मायें गये है, नौशाद जी ने संगीत दिया है और रफ़ी ने भक्ती का एक अलग समा बांध दिया हैं। रफ़ी जब शिर्डी वाले साई बाबा गाते है तो सुनने वाले को वही श्रद्धा और सबूरी मिल जाती है। रफ़ी का यूट्युब पर एक मधुबन में राधिका नाची का लाईव वर्जन हैं, इतने कठिन शास्त्रिय संगीत को रफ़ी चेहरे पर एक भी शिकन लाए बिना गा देते है, अद्भुत हैं, जरूर सुनियेगा।

जब रफ़ी भगवान को कोसते हुए ओ दुनिया के रखवाले, सुन दर्द भरे मेरे नाले गाते है तो लगता हैं कि भगवान से मुख मोड़ने और उनसे ध्यानभंग होने का एहसास यही हैं, शायद ये रफ़ी साहब के गाये सबसे कठिन गानों में से एक हैं, बैजु बावरा के सारे ही गाने बैजोड़ है वैसे। सुख के सब साथी, दुख में ना कोई मेरे राम आपको दुनियादारी समझने के बाद ही समझ आयेगा । और माता रानी की याद आते ही तुने मुझे बुलाया शेरा वालिया रफ़ी की भक्ती की एक और मिसाल हैं।

अब मुझे लिखते लिखते लग रहा हैं कि रफ़ी साहब के अच्छे नगमों का कोई अंत नहीं है। मैं लिखता जाउँगा, बगल में मोबाईल पर गाने भी बजते रहेंगे और ये लिख लंबा होता जायेगा। इसलिये अब अंत की तरफ़ बड़ते हैं कुछ और स्पेशल तरानों के साथ जिसमें सबसे पहले मुझे याद आ रहा हैं मै जिंदगी का साथ निभाता चला गया हर फ़िक्र को धुँए में उड़ाता चला गया।

इस गाने से जीवन का एक किस्सा जुड़ा है, इंजीनियरिंग का आखरी साल था, एक कम्पनी की अमानवीय सी प्लेसमेंट प्रोसस में 2 दिन घीसने और पीसने के बाद बेईजज्त हो कर कमरे में वापस बैठे थे। सुबह से खाना नहीं खाय था, जीवन पर रोश था बहुत और खुद की किस्मत पर आक्रोश्। पर खाने से कब तक नारजगी, बगल की साबुदाना खिचड़ी दुकान पर गये दही वाली खिचड़ी और वड़ा खाने, वहाँ ये गाना बज रहा थ। कुछ अच्छे मौसम का असर था, कुछ खिचड़ी का मजेदार जायका और कुछ इन शब्दों का जादु था बरबादियों का सोग मनाना फ़जूल था मनाना फ़जूल था, मनाना फ़जूल था बरबादियों का जश्न मनाता चला गया जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया मुकद्दर समझ लिया, मुकद्दर समझ लिया जो खो गया मैं उसको भुलाता चला गयामुड अचानक से मस्त हो गया, जीवन में सब कुछ फ़िर से अच्छा लगने लगा, लगा की भय्या सब कुछ क्षणिक हैं मस्ती में जियो और खाओ पीयो, 2 बड़े और एक प्लेट खिचड़ी निपटा कर वापस कमरे आये खुशी खुशी।

वैसे तो 1961 के चीन युद्ध से प्रासंगिक गाना लता जी का ऐ मेरे वतन के लोगो है पर रफ़ी साहब का कर चले हम फ़िदा जान-ओ-तन साथिंयो रोंगटे खड़े करने वाला है, खासकर अगर आप विडियो देखेंगे गाने का तो। परदेसियों से ना अँखिया मिलाना जितना मस्ती भरा गान है इसका सेड वर्जन उतना ही दर्द भरा। खोया खोया चाँद तो मिठास भारी आवाज की एक अलग ही मिसाल हैं, इस तरह के गाने वेस्टर्न तरीके से गाकर अनेकों अनेक कलाकर आज भी प्रसिद्ध हो रहे हैं। रफ़ी साहब खुद बोलते है कि मेरे बिना देश में कोई शादी नहीं हो सकती क्योंकि बारत में आज मेरे यार की शादी हैं बजना तो तय है।

वैसे गायक तो हर दौर में अच्छे रहे है, पर रफ़ी एक गायक नहीं है। रफ़ी एक साधक है, रफ़ी का हर गान उनकी तपस्या की मिसाल है। जब तक लोगो के दिलों में भक्ती है, जब तक लोगो के जीवन में प्यार की दस्तक होगीं, जब तक लोगों के दिल टुंटेगे या दुनिया से मोहभंग होगा, रफ़ी साहब प्रांसगिक रहेंगे, रफ़ी साहब अमर रहेंगे।