Wednesday, July 8, 2020

क्षणिक संवेदनाएँ..........



मनुष्य एक संवेदनशील जीव हैं। थोड़े दिन पहले वो जो ज्ञान भरे फ़ोटो दिख जाते है फ़ेसबुक पर, उस में पढा था कि मनुष्य बाकि जानवरों से इतना ज्यादा आगे इसलिये निकल गया क्योंकि हममें आदिकाल से ही संवेदनाएँ थी, हम अपने कमजोरों और निर्बलों की मदद करकें उन्हें साथ में लेकर चलते थे। जानवरों में भी संवेदनाएँ होती हैं, पर हमसें काफ़ी कम और हमारी जितनी जटिल नहीं, ना ही उनका मस्तिष्क इतना विकसित होता हैं कि वो हमारे जैसा इजहार कर सके, मूक जानवर मन ही मन तड़पता हैं। हम रो सकते है, चिल्ला सकते है, तोड़ फ़ोड़ मचा सकते हैं, दीवारों पर मुक्कें मार सकते है।

आजकल तो और नए तरीके आ गये हैं। वाट्सएप की फ़ोटो हटा दो अपनी ताकि दुनिया उस ग्रे रंग के मुखविहीन तस्वीर में आपके अंदर के खालीपन को देख सके। फ़ेसबुक पर चार गज का निंबध लिख दो, दुनिया में क्या सही हैं, क्या गलत है, है तो क्यू हैं नहीं है तो क्यू नहीं है। आपके पोस्ट पर आये चार पाँच लाईक आपको इतना डोपामिन दे देंगे की रात को नींद अच्छी आएगी।

सोशल मिडिया संवेदनहीन इंसानों के लिये स्वर्ग हैं। वो बिना आहत हुए हर मीम में अपनी खुशी ढुढ लेगा और उस मीम को अलग अलग ग्रुप में डाल कर दुसरों को भी हँसा देगा। पर भावुक लोगो को लिये ये एक टारचर का अस्त्र हैं। आपको दुनिया भर में क्या गलत हो रहा हैं और आप कितने शक्ति-हीन हैं कि इनमें से कुछ भी नहीं बदल सकते का एहसास 5 मिनिट में हो जायेंगा। कहीं किसी देश में ग्रहयुद्ध चल रहा हैं, लाशों के ढेर बिछ गये है। किसी जगह तुफ़ान आ गये, अनेको घर ढह गयें, किसी पूलिस वाले ने या तो ताकत के नशे में या फ़िर अपने विभाग से परेशान हो कर किसी गरीब सब्जी वाले का ठेला तोड़ सब्जियाँ बिखेर दी, किसी मुक जानवर को छ्त से फ़ेक कर मार दिया गया या उसके मुँह में पटाखा फ़ोड़ दिया गया।

MBA के एक कोर्स में पढा था कि बुरी चीजें अच्छी चीजों से 3 गुना ज्यादा असर करती है हम पर । मनोचिकत्सक तो ये भी कहने लगे हैं कि इस पीढी के नाखुश होने की वजह सोशल मीडिया ही हैं। जो कभी हमें दुनिया के दुख दिखाता हैं, तो कभी ये की पड़ोस के गुप्ता जी का बेटा जो पहले टरमीनल परीक्षा में फ़ेल हो जाता था आज अच्छी खासी नौकरी करके 11 लाख की कार खरीद लाया हैं, जबकि आप तो आपके कालेज के सहपाठी मनोज कि यूरोप ट्रिप से ही उभरे नहीं थे अभी।

हमारी संवेदनाए भी अब क्षणिक हैं, हम दुखी हर समय है, पर दुख का कारण सोशल मीडिया के हर एक लोग ईन मे बदल जाता हैं। आप किस राजनितिक विचारधारा का अनुसरण करते हैं, आपको किस जाती के या लिंग के इंसान ने धोखा दिया है, या आप जिसे समझदार समझते है वो किस चीज से दुखी है उस पर भी काफ़ी कुछ निर्भर करता हैं।




कुछ लोगो के लिये दुख का समस्त कारण 1950 के दशक में एक राजनेता के निर्णय है तो कुछ लोगों के लिये दुख देश में 2014 के बाद ही चालू हुए हैं । कामवाली के एक दिन नहीं आने पर तन्ख्वा काट लेने वाले लोग प्रवासी मजदूरों के पलायन पर दुखी हो गये। मीडिया ने भी जम के कहानियाँ प्लांट कर ली, लोगों को पैसे दे कर अपने हिसाब के इन्टरव्यू छाप लिये, आखिर दुख की खबरों में ज्यादा मसाला होता है और वो चलती भी ज्यादा हैं।

बचपन से एसी कमरों मे पली बड़ी एक पूरी पीढ़ी को अचानय ये एहसास हुआ की देश में गरीबी कितनी ज्यादा है और लोग कितने मजबूर और फ़िर सबने अपने हिसाब से समीकरण बना लिये। किसी ने कहा पूलिस की गलती है, एक किसी पुलिस वाले की डंडा चलाने कि विडियो हजार बार शेयर हो जाती है और उसके पीछे वो 100 मामलें दब जाते है जब पुलिस ने मजदूरों की मदद की हो। बीजेपी विरोधियों वैसे भी हर खबर में बीजेपी की नाकामयाबी जोड़ देते हैं, बीजेपी समर्थक बोल देते है कि भाई कांग्रेस ना होती तो गरीबी भी ना होती। एक ही वाकयें से दो अलग अलग आरोपी निकल आते है।

फ़िर आते है वो लोग जो बोलते है की आप आज इस चीज पर दुखी हो रहे है, कल वो घटना पर तो हुए नहीं थे, ये क्या पांखड है। हाथी के मरने पर आँसू बहाने वाले जवानों के मरने पर मौन धारण कर लेते हैं, उन्हें ये दोगलापन लगता हैं। किसी ने कोरोना पर हुई मौत पर कुछ लिख दिया तो एक धड़ा बोलेगा कि आपने पालघर की मौत पर कुछ नहीं लिखा, फ़िर दूसरा बोलेगा आपने CAA के समय की मौत पर कुछ नही लिखा, फ़िर बहुत सारी मौतें आ जायेंगी जिस पर आप चुप थे। कुछ लोग दुखी है कि उनका पंसदीदा फ़िल्मी सितारा गुजर गया, उनकी संवेदनाओं के व्यक्त करने पर कुछ लोग दुखी हैं कि इस आदमी को उस आदमी की मौत पर दुख है जिससे ये मिला भी नहीं ।

हम सब की संवेदनाए क्षणिक है, हमारे पास समय बहुत कम पर साधन और सूचना दोनों बहुत ज्यादा हैं। और हम दूसरों को क्या करना चाहिये क्या नहीं इसमें इतने उलझ गये है कि हम दूसरों के आँसू पोछना भूल गये है, और इस सवाल का जवाब ढुढ रहे हैं कि ये आँसू सहीं विषय पर बह रहे है या नहीं। और अगर सही विषय में भी है तो फ़िर कितनी देर बहेंगे।

क्षणिक आवेश में आकर लिखी गयी ये पोस्ट से अगर किसी को कुछ ठेस पहची हो, तो दिल से माफ़ी, मुझे उम्मीद हैं आपक गुस्सा आपकी संवेदनाओं की तरह क्षणिक होगा।

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