सांझ
ढलने पर किसी दिन हम मिले थे
शायद
वो हमारी आखरी मुलाकात थी
थोड़ी
बेख्याली थी, थोड़ी बेताबी थी
क्योंकि
वो हमारी आखरी मुलाकात थी
होठों
पर हँसी थी, पर आँखो में नमी थी
साथ
होने पर भी, कुछ तो कमी थी
बातों
में खामोशी थी, लब्ज भी उदासे थे
किस्सें
जो कल तक आम थे, आज बड़े खास थे
थोड़ा
चुप में था, थोड़ी चुप तुम थी
खामोश सी वो हमारी आखरी मुलाकात थी
अंधेरा
बड़ा सघन हो चला था
चाँद
भी बादलों मे छुप चला था
एक
दूजे में हम खोये हुए थे
जुदाई
के पहले मिलन की वह आखरी मुलाकात थी
कुछ
तुम कहना चाहती थी, कुछ मैं कहना चाहता था
कुछ
मैं सुनना चाहता थ, कुछ तुम सुनना चाहती थी
थोड़ी
उम्मीद थोड़ी आशा, कशमकश से भरपूर
थोड़ी
उलझी थोड़ी सुलझी वो हमारी आखरी मुलाकात थी
कुछ
तुम्हारी आँखों में मैं खोया था
थोड़ी
मेरी आँखों में तुम डुबी थी
नजरों
ही नजरों में बातें हो रही थी
इशारो
ही इशारो भरी वो हमारी आखरी मुलाकात थी
शायद
जिंदगी में अब मिलना ना लिखा हो
मिलेंगे
भी तो अजनबी बन कर
तुम
तुम ना रहोगी, मैं मैं ना रहुँगा
इसलिये
ही वो हमारी आखरी मुलाकात थी।
:) good work there, Sharma ji!
ReplyDeleteThank you pandey ji, I am happy you read it ! :) :)
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