जब निहारा था पहली बार तुम्हे
तब भी एक प्रश्न उठा था
अब भी निहारता हुँ जब तुम्हे
वही प्रश्न फ़िर उठता है
इकरार तो कर बैठे खामोशी से
अब इजहार कैसे करे
कभी एकटक देखता रह जाता हुँ
कभी भावनाओ मे बह जाता हुँ
कभी सब कह भी खामोश रह जाता हुँ
बस जो चाहु वो नहीं कह पात हुँ
होठ कपकपाते है, पग डगमगाते है
लाख रोको तो भी आँसू छलक आते है
मेरी खामोशी भी कभी सुनो
मेरी बेकरारी भी कभी चुनो
कितने ही कागज भर दिये
सभी बस व्यर्थ कर दिये
सोचता हु खुद कागज बन जाऊ
खामोशी कलम मेरी, सब लाल स्याही से भर जाउ
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