Friday, July 1, 2011

मन के संशय

बचपन में बाबा भारती और खड्गसिंह की कहानी पढी थी । खड्गसिंह धोखे से एक असहाय बन बाबा का घोड़ा चुरा लेता है और बाबा बस इतनी विनती करते है कि ये वाकया किसी को बताना नहीं वरना लोगो का मन परोपकार एवं सहायता से उठ जायेंगा। बाबा के इस नि:स्वार्थ व्याव्हार से खड्गसिंह का ह्र्दय परिवर्तित हो जाता है एव वह घोड़ा लौटा देता है । मेरे बालमन पर भी गहरा प्रभाव रहा इस कहानी का, सोचा कुछ भी हो जाये लोगो की मदद करने का मौका नहीं छोड़ेंगे। भले ही चंद लोग मूर्ख कह के हँस ले, भले ही चंद लोग सोच ले की हमने फ़ायदा उठा लिया पर अनिश्चितता में आकर कभी किसी जरूरतमंद से मुँह मोड़ना इंनसानित से भागना एव अपने नैतिक दायित्वों से मुँह मोड़ना होगा।

वक्त आगे बढा। परिस्थितिया बदली तो उनके हिसाब से लोग भी और उनकी नीयते भी पर मैने अपने मूल स्वभाव मे बदलाव लाना उचित ना समझा। एक और कहानी सुनने मे आयी। साधु और बिच्छु की, एक साधु डुबते हुये बिच्छु को अपने हाथो मे लेकर बचाता है और बिच्छु अपने स्वभाव से विवश हो उसे काट लेता है, ये वाकया बार बार दोहराया जाता है। जब साधु से कारण पूछा गया तो उसने मुस्कुरा कर जवाब दिया कि अगर ये जानवर होते हुये अपना मूल स्वभाव नहीं त्याग सकता तो मैं तो इन्सान हुँ। मन थोड़ा और खुश हो गया सोचा कि यही आदर्श सही है, अगर किसी स्वार्थी या बेवकुफ़ की मदद से अपने को कोई हानि ना हो रही हो तो फ़िर क्या हर्ज है। लेकिन अब लगता है कि इस भौतिक युग मे इंसान के साधुत्व का कोई मोल नहीं। आप लाख कोशिश करे कि आपकी अच्छाई और सही शब्दों मे की गयी आलोचना से लोग अपना व्यव्हार बदल ले पर होता अक्सर विपरीत ही है।

जब तक आप किसी की मदद कर रहे हो। आप तमाम तरह की उपमाओं और कृतज्ञता से लाद दिये जायेंगे। लोग आपकी तारीफ़ करते नहीं थंकेगे और न चाहते हुए भी आपको खुद पर गुमान होने लगेगा पर जैसे ही आप अपनी मजबुरियों के कारण हाथ खींचेगे वैसे ही आप दानवतुल्य हो जायेगे। आपके पिछले एहसान क्षणभर में मूल्यहीन हो जायेंगे और आपका सम्पूर्ण चरित्रचित्रण इसी एक क्रत्य से किया जायेगा। स्वार्थी, मतलबी, भौतिकवादी तमाम विशेषण आपके नाम के साथ सदैव के लिये जुड़ जायेग़े। ये विडबना ही है कि जब आपकी आलोचना की जाती है तो ये उम्मीद की जाती है कि आप उसे सही अर्थो मे लेंगे भले ही आलोचना का तरीका कितना भी निम्न स्तर का क्यो न हो। पर अगर आप किसी के कमजोर पहलु को उजागर करते हुये उनकी कमजोरी इंगित करते है तो आप स्थायी खलनायक हो जाते है। कभी कभी लोग तारीफ़ की चाह में आकलन की आड़ लेते है और अगर आप इमानदार रहे तो आप को इष्यालु, अनाड़ी और दूसरों की टाँग खिचने वाला समझा जायेगा।

मनुष्य का स्वभाव ही ऐसा हो गया है कि वो तभी खुशी की अनुभूति करता है जब सामने वाला वही कहे जो वो सुनना चाहता हो। उसी व्यक्ति को अपन सच्चा मित्र मानता हो जो उसकी हर बात मूकदर्शक बन के सुनता रहे और उसके हर विचार पर बिना विमर्श किये सहमति देता रहे। जी खोल के तारिफ़ करने वाले व्यक्ति तो कुछ ज्यादा ही अजीज लगते है, भले ही आपका काम तारिफ़ के लायक हो या नहीं। प्रयत्न हमेशा तारीफ़ का पात्र होता है पर परिणाम जरूरी नहीं। आजकल उन्हीं लोगो को सच्चा समझा जाता है जो प्रयत्नशील व्यक्ति की लाख खिल्ली उड़ाये पर परिणाम पर जी खोल कर तारिफ़ करे भले ही वहीं परिणाम उस व्यक्ति के लिये किसी और जगह हँसी का कारण बन जाये। ये बहुत ही कशमकश भरा और जटिल सवाल है कि आप दुसरो पर टिप्पणी करते वक्त पूरी तरह ईमानदार रहे या नहीं और मुझे दुख है कि फ़िलहाल मेरे पास भी इसका कोई जवाब नही और संशह है की कभी होगा । अब किसी की भी मदद करते समय मन में संशय जरूर होता है , क्योंकि आज का खड्गसिंह घोड़ा लौटाना तो दूर बाबा को भी लात मार के दुत्कार देता है ।

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